लोककथाएं हिंदी कक्षा 9वीं पाठ 4.2
आज भी वाचिक परंपरा में ल्रोक साहित्य विद्यमान है। जिसे हम लोककथा, लोकगीत, लोकगाथा, कहावतें (हाना) मुहावरे, जनउला (पहेली) आदि के नाम से जानते हैं। ये लोक संपति हैं। इनकी रचना किसने की यह अज्ञात है। लोक के इस ज्ञान को अब अनेक रघनाकारों द्वारा लिखा जा रहा है। इस पाठ में एक हल्बी और एक छत्तीसगढ़ी लोककथा दी जा रही है।
१. साँच ल आँच का (हल्बी लोककथा)
बहुत दिन पहिली के बात आय। एक झन किसान के बेटा हर एकेल्ला जंगल डहर जावत रहिस। सँगे-सँगवारी के बिना रदूदा कइसे रंगे जाय, ये सोच के वोहर एकठन ठेंगा म॒ तुमड़ी ल बाँध के जंगल के रदूदा रंगे लागिस। रददा शेगत-रैंगलत ओला एकठन बड़का असन केकरा मिलिस। वोहर किसान के बेटा के सँँगे-सँग कोरकिर-कोरकिर आए ल्ागिस। तब किसान के बेटा हर ओला रददा ले दुरिहा मढ़ा के कहिस, “तैँ मोर सँग रैंगत-रैंगत कहाँ जाबे, इहिच्च करा रेहे राह, मोला अड़बड़ दुरिहा जाना है, थक जाबे।” ये कहि के वोहा अपन रददा रेंगे लागिस।
तब केकरा हर कहिस, भाई-ददा,
सँग म॒ सँगवारी होही, रददा थोकिन सरू होही।
मोला तैँ सँग ले जाबे, हरहिंछा तेँ जिनगी पाबे।
केकरा के निक बात ल सुन के किसान के बेटा हर सॉचिस, चल आज इही ल सँगवारी मान लेयाँ। अउ ओला तुमड़ी म धर के आगू डहर चल दिस।
कटकटाए जंगल। सॉकुर रददा। कॉटा-खूँटो ले बाँचत आयू रंगे लागिस। रेंगत रेंगत वो हर एकठन जंगल म॑ पहुँच गिस, जिहाँ एकठन सॉँप अउ कठँवा के गजब दबदबा राहय, डर अड तरास राहय। जउन ओ जंगल म जाय, बोहर कभू लहूट के नड़ आय। सॉप अउ कडेंआ हर उनला मार के खा जॉय। उही पाय के ओ राज के राजा हर हॉका परवा दे रहिस,”जउन हर साँप अउ कँआ ल मारही, वोकर सँग राजकुमारी के बिहाव कर दे जाही अउ ओला आधा राज के मालिक बना दे जाही।”